03 February 2011

सोने सा मन


वोह कैसा दर्द जो थम जाये
वोह आंसू क्या जो बिखर जाये|
मेरे कलेजे की हर रंजिश
मुझमे ही टूट के बिखर जाये|

कमज़ोर है वो हंसीं
फीकी हर वो मुस्कान|
जिसके उजले पर्दों ने
कई दाग ना हों छुपाएँ|

दर्द हैं दामन में सौ
हर तरफ आग के समंदर |
लकड़ी नहीं सोना हूँ मैं मगर
जितना जलू उतना निखार आये|